नई दिल्ली: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में संजीव खन्ना को भारत के मुख्य न्यायाधीश पद की शपथ दिलाई.

दिलचस्प है वकील से चीफ जस्टिस बनने का सफर
दिल्ली के एक प्रतिष्ठित परिवार से ताल्लुक रखने वाले न्यायमूर्ति खन्ना दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति देव राज खन्ना के बेटे और सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख पूर्व न्यायाधीश एच आर खन्ना के भतीजे हैं.

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, जिन्हें 18 जनवरी, 2019 को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था, हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने से पहले तीसरी पीढ़ी के वकील थे. वे लंबित मामलों को कम करने और न्याय वितरण में तेजी लाने के उत्साह से प्रेरित हैं.
जस्टिस संजीव खन्ना के चाचा 1976 में आए थे चर्चा में
न्यायमूर्ति खन्ना के चाचा जस्टिस एच आर खन्ना आपातकाल के दौरान कुख्यात एडीएम जबलपुर मामले में असहमतिपूर्ण फैसला लिखने के बाद 1976 में इस्तीफा देकर सुर्खियों में आए थे. आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों के हनन को बरकरार रखने वाले संविधान पीठ के बहुमत के फैसले को न्यायपालिका पर एक 'काला धब्बा' माना गया था.

हालांकि न्यायमूर्ति एच आर खन्ना ने इस कदम को असंवैधानिक और कानून के शासन के खिलाफ घोषित किया और इसकी कीमत चुकाई क्योंकि तत्कालीन केंद्र सरकार ने उन्हें हटा दिया और न्यायमूर्ति एम एच बेग को अगला सीजेआई बना दिया. न्यायमूर्ति एच आर खन्ना 1973 के केशवानंद भारती मामले में बुनियादी ढांचे के सिद्धांत को प्रतिपादित करने वाले ऐतिहासिक फैसले का हिस्सा थे.
जस्टिस खन्ना ने ईवीएम को बताया था सुरक्षित
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजीव खन्ना के उल्लेखनीय फैसलों में से एक है चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के इस्तेमाल को बरकरार रखना. तब उन्होंने फैसले सुनाते हुए यह कहा था कि ये उपकरण सुरक्षित हैं और बूथ कैप्चरिंग और फर्जी मतदान को खत्म करते हैं. जस्टिस खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने 26 अप्रैल को ईवीएम में हेरफेर के संदेह को "निराधार" करार दिया था और पुरानी पेपर बैलेट प्रणाली पर वापस लौटने की मांग को खारिज कर दिया था.

इसके अलावा वे पांच जजों की उस पीठ का भी हिस्सा थे, जिसने राजनीतिक दलों को फंडिंग करने के लिए चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक घोषित किया था. जस्टिस खन्ना पांच न्यायाधीशों की पीठ का हिस्सा थे, जिसने संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र के 2019 के फैसले को बरकरार रखा, जिसने तत्कालीन राज्य जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा दिया था.
यह न्यायमूर्ति खन्ना की अगुवाई वाली पीठ ही थी, जिसने पहली बार तत्कालीन मुख्यमंत्री केजरीवाल को आबकारी नीति घोटाले के मामलों में लोकसभा चुनाव में प्रचार करने के लिए 1 जून तक अंतरिम जमानत दी थी.

वकील से सीजेआई बनने का सफर
जस्टिस संजीव खन्ना का जन्म 14 मई 1960 को हुआ. दिल्ली के मॉडर्न स्कूल, बाराखंभा रोड से स्कूली शिक्षा पूरी कर वो 1980 में दिल्ली विश्वविद्यालय से ग्रेजुएट हुए. फिर दिल्ली विश्वविद्यालय के ही कैंपस लॉ सेंटर यानी CLC से उन्होंने कानून की डिग्री ली. वे राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) के कार्यकारी अध्यक्ष थे. उन्होंने 1983 में दिल्ली बार काउंसिल में एक वकील के रूप में नामांकन कराया और शुरुआत में यहां तीस हजारी परिसर में जिला कोर्ट में और बाद में दिल्ली हाईकोर्ट में प्रैक्टिस की.
उन्होंने कमर्शियल लॉ, कंपनी लॉ, लैंड लॉ, पर्यावरण कानून और चिकित्सा लापरवाही जैसे क्षेत्रों के साथ-साथ आयकर विभाग के वरिष्ठ स्थायी वकील के रूप में उनका लंबा कार्यकाल रहा. सन 2004 में वह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के लिए स्थायी वकील नियुक्त हुए. दिल्ली हाईकोर्ट में वो अतिरिक्त लोक अभियोजक और एमिकस क्यूरी के रूप में कई आपराधिक मामलों में भी अपनी भूमिका बखूबी निभाई. दिल्ली हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में 2005 में पदोन्नत हुए. 2006 में स्थायी न्यायाधीश बनाए गए. दिल्ली हाईकोर्ट के जज रहते हुए, उन्होंने दिल्ली न्यायिक अकादमी, दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र और जिला न्यायालय मध्यस्थता केंद्र के अध्यक्ष/प्रभारी न्यायाधीश का पद संभाला.



add one